नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

31 December, 2013

ह्रदय कमल खिलाना चाहती हूँ मैं ........!!!!!




ज़िंदज़गी तुझे गुनगुनाना चाहती हूँ  मैं

भोर के  स्पर्श से
भावों की अनंत रश्मियाँ
शब्दों का प्रकाश बन
लुटाना चाहती हूँ मैं
ह्रदय कमल खिलाना चाहती हूँ मैं

नदी की चंचल लहरों के संग
भावों की बन तरंग
शब्दों के बहाव में 
समुन्दर तक जाना  चाहती हूँ मैं

अनंत आकाश के विस्तार में
भावों की  बन उमंग 
शब्दों के  पंख लगा  
चिड़िया सी उड़ जाना चाहती हूँ मैं
चहचहाना चाहती हूँ मैं 

किसी वृद्ध की भावनाओं का
सम्बल बन
शब्दों का  हाथ थाम
वक़्त के साथ
बस वहीँ रुक जाना चाहती हूँ मैं

भावों की बंजर ज़मीन सी
सूखी आँखों में
शब्दों की कुछ हरियाली लिए
एक पात सी खिल जाना चाहती हूँ मैं
जीवन चाहती हूँ मैं

सूखी हुई रेत पर भावों के आँसू बो
शब्दों की मुस्कुराहटों के
फूल खिलाना चाहती हूँ मैं

हाँ मुस्कुराना चाहती हूँ मैं


ज़िंदज़गी तुझे गुनगुनाना चाहती हूँ  मैं.......................... !!


सिर्फ सांस  लेना ही तो जीवन नहीं।हम  सभी के मन में पलती  हैं ऎसी ही छोटी छोटी अनेक इच्छाएं। …!! यही छोटी छोटी इच्छाएं लिए अब 2014 में प्रवेश कर रहा है हम  सभी का मन। …!!
नव वर्ष २०१४ की आप सभी को अनेकानेक शुभकामनायें !!ईश्वर करे यह नया वर्ष आप सभी के जीवन में अनेक अनेक खुशियां लाये। उज्जवल  प्रकाश से भरा रहे मन.....जिंदगी सदा गुनगुनाये ……  मुस्कुराये

24 December, 2013

निर्बल को भी बल देता है प्रेम



या होता है
या  नहीं ही होता,
पूर्ण खिलकर
पुष्पित होता है !!
एक रूप एक रंग
अद्वैत सम
शाश्वत सत्य है प्रेम
बुद्धि को समृद्ध करे
जीव को अलंकृत करे
जीवन को सुरक्षित करे
आत्मा  को सुरभित करे …!!

मोल नहीं है इसका
कोई तोल नहीं है इसका
मौन होकर भी मुखर

अदृश्य होकर भी दृष्टोगोचर
लुकता नहीं है ,छिपता नहीं है ,
झुकता नहीं है प्रेम
गौरव से मस्तक है ऊँचा
ईश्वर के समरूप है सच्चा
निर्बल को भी बल देता है प्रेम ...............!!


16 December, 2013

कुछ शब्दों की लौ सी …




सृष्टि का एक भाग
अंधकारमय करता हुआ ,
 विधि के प्रवर्तन से बंधा
जब डूबता है सूरज
सागर के  अतल प्रशांत  में
सत्य का अस्तित्व बोध  लिए,
कुछ शब्दों की लौ सी,
वह  अटल आशा  संचारित  रही
मोह-पटल  के स्वर्णिम  एकांत  में .....!!

उस लौ के साथ
तब ....कुछ शब्द रचना
और रचते ही जाना
जिससे पहुँच सके तुम तक 
अंतस की वो पीड़ा   मेरी 
क्यूंकि शब्द शब्द व्यथा  गहराती है
टेर हृदय की क्षीण सी पड़ती 
पल पल बीतती ज़िंदगी 
मुट्ठी भर  रेत सी फिसलती जाती है ....!!


04 December, 2013

भेद अभेद ही रह जाये ...!!

विस्मृत नहीं होती छवि
पुनः प्रकाशवान रवि
एक स्मृति है
सुख की अनुभूति है ....!!
स्वप्न की पृष्ठभूमि में
प्रखर हुआ  जीवन ...!!
कनक प्रभात उदय हुई
कंचन   मन आरोचन .........!!

अतीत एक आशातीत  स्वप्न सा प्रतीत होता है

पीत कमल सा खिलता
निसर्ग की रग-रग  में रचा बसा
वो  शाश्वत प्रेम का सत्य
उत्स संजात(उत्पन्न) करता
अंतस भाव  सृजित  करता
प्रभाव तरंगित करता  है ..!!
.
तब शब्दों में  …
प्रकृति की प्रेम पातियाँ झर झर झरें
मन  ले उड़ान उड़े
जब स्वप्न कमल
प्रभास से पंखुड़ी-पंखुड़ी खिलें  ......!!

स्वप्न में खोयी सी
किस विध समझूँ
कौन समझाये
एक हिस्सा जीवन का
एक किस्सा मेरे मन का
स्वप्न जीवन है या
जीवन ही स्वप्न है
कौन बतलाए ....?
भेद अभेद ही रह  जाये ...!!